समायोजन का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं

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Meaning, Definition and Characteristics of Adjustment

 

समायोजन:-

 किसी भी देश का भविष्य उसके विद्यार्थियों पर निर्भर करता है क्योंकि छात्र ही देश के भावी कर्णधार होते है  विद्यार्थियों की शिक्षा-दीक्षा उचित वातावरण में हो यह तो आवश्यक है ही  साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि उनका पाठ्य-क्रम भी संतुलित हो जिससे ये किताबी-कीड़े न बन जाय बल्कि उनका मानसिक विकास के साथ साथ सामाजिक विकास भी संभव हो सके  आधुनिक शिक्षा के अंतर्गत विद्यार्थी के मानसिक विकास तक ही शिक्षा का अर्थ सीमित नही होता है  आज की शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखा जाता है ।

 अतः अब केवल कुछ विषयों का सैद्धांतिक ज्ञान करा देने मात्र से कम नही चल सकता है  आज वैज्ञानिकता के दौर में जीवन जटिल एवं शीघ्रतापूर्वक परिवर्तित होता जा रहा है  इस जटिल एवं परिवर्तन शील संसार में व्यक्ति के अपने बाह्य एवं आतंरिक वातावरण के उपयुक्त समायोजन करने से ही उसका जीवन व्यवस्थित तथा सुखी हो सकता!
       समायोजन तथा आत्मसम्प्रत्यय व्यक्तित्व के अभिन्न अंग है।ये दोनों ही स्वस्थ व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। शिक्षा व्यवहार परिवर्तन तथा विकास की प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने वातावरण से समायोजन स्थापित करता है।
 
       जैसे एक सामान्य बालक इस समाज का अंग है,उसी प्रकार एक दृष्टिहीन बालक भी समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। शिक्षा के मापध्यम से उसे एक उपयुक्त मानव संसाधन के रूप में समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। एक समावेशी एवं विशेष विद्यालय में दृष्टिबाधित बालकों अथवा विद्यार्थियों का आत्मसम्प्रत्यय कैसा होता है? एवं उसका उसके समायोजन से क्या सम्बन्ध है? इसके साथ-साथ एक समावेशी विद्यालय एवं विशिष्ट विद्यालय की विद्यार्थियों के आत्मसम्प्रत्यय एवं समायोजन के सम्बन्धों में कितना अन्तर है?
ये ज्ञात करने के लिए ही इस शोध समस्या का चयन किया गया है।क्योंकि दृष्टिबाधिता के आत्मसम्प्रत्यय एवं समायोजन में सम्बन्ध पर (क्रेनो 1984, चटर्जी 1984,स्वामी प्रियकान्त एम.1989, राम.पी.एस.1992) बहुत अधिक शोधकार्य नहीं हुए हैं, जिससे की एक साविधिक व विद्यालयी वातावरण के माध्यम से यथोचित आत्मसम्प्रत्यय का विकास किया जा सकें।
 
     प्रत्येक दृष्टिबाधित बालक न केवल सामान्य बालक से भिन्न होता है, अपितु आपस में भी अलग होते है। प्रत्येक दृष्टिबाधित बालक के दृष्टिबाधिता के कारण,प्रकार,डिग्री,दृष्टिक्षेत्र,क्षमता तीक्ष्णता,दृष्टिबाधिता के समय आयु आदि का विशेष रूप से उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।
वह बालक जो रंजक हीनता के कारण दृष्टिबाधित हुआ है,प्रकाशभीत से पीड़ित बालक से भिन्न आवश्यकता रखता है, उसी के अनुसार उसकी विचारधारा विकसित होती है तथा आत्मसम्प्रत्यय बनता है, इसी प्रकार भिन्न प्रकार के कारणों का भिन्न-भिन्न प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
अधिकांश बालकों में कुछ न कुछ दृष्टि आवश्य रहती है दृष्टिबाधितों की दृष्टिक्षमता इन चलिष्णुता,अधिगम अनुभवों तथा वातावरण से सामंजस्य को प्रभावित करती  है। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न दृष्टिक्षमता वाले बालकों का स्यवं के प्रति दृष्टिकोण भी भिन्न-भिन्न रहता है।
 
      विभिन्न शोधों के आधार पर यह स्वीकार कर लिया गया है कि 5 से 7 वर्ष की आयु से पूर्व दृष्टिबाधित हुए बालक रंग तथा अन्य दृष्टिमूलक अनुभवों को याद नहीं रख पाते इसलिए ऐसे बालक अनुभव प्राप्त करने के लिए गैर दृष्टि इन्द्रिय पर निर्भर रहते,जबकि अचानक तथा धीरे-धीरे दृष्टिबाधित हुए बालकों में मनोवैज्ञानिक भिन्नता पाई जाती है।
 
      उपरोक्त कारणों का कहीं न कहीं बालक के बनने वाले आत्सम्प्रत्यय पर प्रभाव आवश्य पड़ता है। साथ ही इन सबका प्रभाव उसके समायोजन पर भी पड़ता है। किन्तु यहां इस अध्ययन का घटक दृष्टिबाधिता के प्रकार आदि जानने का न होकर मात्र उसके आत्मसम्प्रत्यय तथा समायोजन में सम्बन्ध ज्ञात करना है। जिससे उन्हें अपने वातावरण में समायोजन करने में सरलता हो और वह भी इस समाज में एक सामाजिक जीवन जी सके।

 

समायोजन की अवधारणा:
Meaning, Definition and Characteristics of Adjustment

 एक व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके चारों ओर विस्तृत परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं के मध्य एक निश्चित प्रकार के समायोजन के लिए उसकी निरन्तर प्रवृत्ति से बनता है। एक संतुलित व्यकतित्व, व्यक्ति तथा वातावरण के मध्य उपर्युक्त समायोजन का परिणाम है।
मनुष्य को इस सृष्टि का सिरमौर सम्भवतः उसकी समायोजन क्षमता के कारण ही कहा दाता है।व्यक्ति के वातावरण को तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
प्रथम भैतिक वातावरण जिसके साथ तालमेल के बिना वह जीवित नहीं रह सकता।
    द्वीतीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण, जिसमें वह अपने तथा दूसरों के बीच की दूरी को कम करता है। सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी लोग सुखी हों) का राग अलापता है तथा जिसके बिना वह एक रिक्तता का अनुभव करता है।
 
    तृतीय, मनोवैज्ञानिक पर्यावरण,जिससे वह अलग नहीं रह सकता और जो उसकी आन्तरिक दुनिया के रूप में उसे सोचने,कल्पना की उड़ान भरने तथा समय एवं स्थान की सीमाओं को तोड़करएक सुदूर अपरिचित संदर्भ से रिश्ता जोड़ने में उसे कामयाबी दिलाता है।
 

    मनुष्य का अपने पर्यावरण से संतुलन कायम करने तथा उसकी चुनौतियों से सफल समन्वय तथा समझौते की स्थिति तक पहुंचने की निरन्तर प्रक्रिया को ही समायोजन कहते है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समायोजन वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति मनोवैज्ञनिक तथा शारीरिक स्तर की समानता को बनाये रखने का प्रयास करता है, या स्पष्टतया समायोजन व्यक्ति के व्यवहार को तनावमुक्ति की ओर निर्देशित करता है ताकि व्यक्ति अपनी उर्जा एक विशिष्ट दिशा में एकाग्रचित तथा मार्गान्तरित करने के लिए स्वतंत्र हो सकें।

परिभाषा:-

 
जेम्स. सी.कोलमैन के मतानुसार:-
             समायोजन अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के मार्ग में होने वाले तनावों से निपटने के लिए व्यक्ति द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम है।
 
लेस्टर डी.क्रो तथा एलिस क्रो के मतानुसार:-
             मानवीय अन्तर्नोद तथा अन्तःप्रेरणाएं व्यक्ति को कुछ निश्चित लक्ष्यों तथा हितो की प्राप्ति की ओर उत्प्रेरित करती है, ऐसी दशा में फलीभूत वह व्यवहार,जो व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए तुष्टीकारक होता है, समायोजन कहलाता है।
 
     प्रायः समायोजन शब्द को दो अर्थो में प्रयुक्त किया जाता
 है प्रथम, समायोजन एक स्थिति (दशा) है, उसमें यह एक से अधिक विविध तत्वों के मध्य एक सन्तोषप्रद सम्बन्ध की स्थापना,क्रियापरक समरसता तथा इष्टतम् अनुकूलन का एक प्रतीक है। इस संतुलित दशा पर पहुंचने पर व्यक्ति को सुसमायोजित कहते है।
 

      समायोजन एक प्रक्रिया है। यह एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं तथा अपने पर्यावरण के मध्य अधिक सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने हेतु अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेता है या पर्यावरण को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल लेता है या ये दोनों एक दूसरे के सापेक्ष परिवर्तित हो जाते हैं।

Meaning, Definition and Characteristics of Adjustment

समायोजन की प्रक्रिया एवं विशेषताएं:-

समायोजन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है,व्यक्ति के विकास के प्रत्येक प्रक्रिया में यह विद्यमान रहती है। इसमें व्यक्ति पर्यावरण या दोनें ही प्रभावित होते हैं।समायोजन को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अपने पर्यावरण को अपनी आवश्कताओं के अनुकूल बदल देता है या पर्यावरण के अनुकूल अपना अभ्यानुकूलन करके वह स्वयं बदल जाता है।
ऐसी दशा में वह अपने बारे में सम्प्रत्ययों, प्रत्यक्षीकरणों तथा मूल्याकनों को भी परिवर्तित कर लेता है। इस सम्बन्ध में एक तीसरी सम्भावना यह भी है कि इन दोनों पक्षों में तबदीली आए। डा. इन्दू देव ने समायोजन को व्यक्तित्व की सहज प्रक्रिया के रूप में उपकल्पित किया है| 
Meaning, Definition and Characteristics of Adjustment
 
विशेषताएं:-
 
1. समायोजन द्वीमार्गी प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति या उसके पर्यावरण या इन दोनों में ही परिवर्तन होता है।
 
2. समायोजन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
 
3. समायोजन एक उद्देश्यमुखी प्रक्रिया है, इसके द्वारा व्यक्ति अपने तनावों से मुक्ति मिलती है।
 
4. समायोजन की प्रक्रिया में उद्देश्य की संतुष्टि न होने पर कुण्ठा उत्पन्न होता है,लेकिन प्रत्येक अवस्था की पूर्ति होना सम्भव नही है।
 अतः व्यक्ति अपने कुण्ठा के साथ जीना सीख जाता है, इसे कुण्ठा सहिष्णुता कहा जाता है जो समायोजन का ही एक रूप है।
 
5. समायोजन की असफलता व्यक्ति को मानसिक रोगों क ओर अग्रसर कर देती है।


 

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